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अनुभूति में पुष्पा तिवारी की रचनाएँ

छदमुक्त में-
आजकल क्या लिख रही हो
आत्मविश्लेषण
कितना जानती हूँ
छोटी छोटी बातें
व्यावहारिक बनने की चेष्टा

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छोटी छोटी बातें

छोटी छोटी बातें
छोटी छोटी चीजें
अरे छोड़ो इन्हें
बड़ी बात करो
बड़े काम करो
बड़ी बड़ी चीजों के ढेर से विज्ञापन
बड़ी चीजें खरीदो
अल्मारी, टी.वी., कार
मीडिया, अखबार, नेता
चौबीस घंटे चीख चीखकर
प्रचार में हैं
इंसान
अब किस श्रेणी में है भाई
ओझल हो रहा है बातों से
खबरों से
उसके लिए आंकड़ों का
संबोधन है शेष
इतने मरे इतने घायल
जैसे हम किसी रैसिपी की बात कर रहे हों
केवल बातों के लिए
दहले हुए से दिखते हुए
दूसरे ही मिनट भूलते हुए
हमें भी तो अपने पेट के लिए
नौकरी बजानी है
ऐसी छोटी छोटी बातों के लिए
समय कहां
क्या समय ही जिम्मेदार है
छोटे बड़े का पैमाना नापने
क्या हमारी औकात समय नापेगा
क्या हमारे बस में नहीं बचा कुछ
क्या हम समय के हाथों बिक चुके
क्या हम समय में खुद ढलेंगे
क्या हम समय का अपना समय
नहीं कहेंगे
फिर तो समय ही ठीक है
हम इंसानों ने
छोटी छोटी बातों और कामों को
क्या छोड़ा
हर तरफ बड़ी बात बड़ा काम
पर हम भूल गए
छोटी छोटी बातों से बड़ी बात
छोटे छोटे कामों से बड़ा काम
हम सब भूल गए
हमारी स्मृति, यादें
सब भूलती जा रही हैं
समय कहता है
भूलो नहीं तो आगे कैसे
समय बलवान है
हम सब झुक कर नमन कर रहे हैं
वही सिखाएगा हमें
सब

६ दिसंबर २०१०

 

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