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अनुभूति में राजन स्वामी की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अधूरेपन का मसला
धूप से तप रहे जंगल
बातें

बुझा बुझा-सा है
मुश्किल है

छंदमुक्त में-
चश्मा
जब पिताजी थे
नन्हीं बिटिया की डायरी से

 

मुश्किल है

अपनेपन की तक़रीरों के सच तक जाना मुश्किल है,
कौन भला है, कौन बुरा है, तय कर पाना मुश्किल है।


फैल  चुकी  है  चप्पे-चप्पे  ख़ुदगर्जी  की नागफनी,
इन रिश्तों की पगडंडी पर अब चल पाना मुश्किल है।


बच्चों के अरमानों का क़द मेरी हद को लांघ गया,
अब मेरा अपने ही घर में आना-जाना मुश्किल है।


जो आसानी से मिल जाए, क्यों उसको बिसराकर दिल
उसके पीछे चल पड़ता है, जिसको पाना मुश्किल है?


हाँ, यह सच है, दिल में उलझन हो तो मुश्किल होती है,
यह भी सच है, हर उलझन को सुलझा पाना मुश्किल है।

१० मई २०१०

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