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अनुभूति में राजेंद्र "अविरल" की
रचनाएँ -

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हास्य-व्यंग्य—
नेता पुत्र की अभिलाषा

कविताओं में—
पिता
बाबा
बिटिया पतंग उड़ा रही है
मैं जनता हूँ
हे ईश्वर

 

नेता पुत्र की अभिलाषा

दद्दू, मुझको टिकट दिला दे,
जीत के मैं बिक जाऊँगा।
राजनीति के निकट तू ला दे
उसमें ही टिक जाऊँगा।

तूने तो अपना जीवन यों,
एक ही दल में काट दिया,
जो भी मिला उसी को सबमें,
मिल-जुल कर के बाँट लिया।

पर मैं तेरा छोरा हूँ दद्दू,
हार के भी ना मानूँगा।
अपने हितों की खातिर जब-तब
रार सभी से ठानूँगा

सत्ता मिल जाने तक दद्दू,
चैन से मैं ना बैठूँगा,
कभी इस दल में, कभी उस दल में
स्वार्थ की रोटी सेकूँगा,

राम-राम भी बोलूँगा,
और श्याम-श्याम भी बोलूँगा.
सत्ता मिल जाने तक ना मैं,
अपने पत्ते खोलूँगा।

सूखे में सुख-भोग करूँगा,
बाढ़ को पी मैं जाऊँगा।
रूखी-सूखी खा कर, दद्दू
कौम ना मैं लजवाऊँगा .

दद्दू, मुझको टिकट दिला दे,
जीत के मैं बिक जाऊँगा।
राजनीति के निकट तू ला दे
उसमें ही टिक जाऊँगा।

24 सितंबर 2007

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