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अनुभूति में राजेंद्र "अविरल" की
रचनाएँ -

गीतों में—
सृजन स्वप्न

हास्य-व्यंग्य—
नेता पुत्र की अभिलाषा

कविताओं में—
पिता
बाबा
बिटिया पतंग उड़ा रही है
मैं जनता हूँ
हे ईश्वर

 

सृजन स्वप्न

मैं सृजन की कल्पना में खो रहा हूँ
दूर से आवाज़ ना देना दुबारा. . .
सृजन के स्वप्नों अब मैं जी रहा हूँ,
देते रहना अब केवल तुम ही सहारा. . .
मैं सृजन की. . .

लड़ते रहना ज़िंदगी से हैं ये मकसद,
मर गया वो, जो कभी जीवन से हारा,
नवसृजन की कश्तियों को ले चला हूँ,
कर ना लेना तुम कहीं मुझसे किनारा. . .
मैं सृजन की. . .

भाव अगणित मन में मेरे उठ रहे हैं,
दिल ना हो जाए कहीं पागल आवारा।
चाहता हूँ खुद ही कहना मैं ही तुमसे. . .
हो रहा है मन मेरा बेबस बेचारा. . .
मैं सृजन की. . .

बे-विचारे, अब बहुत मैं जी लिया हूँ,
ज़िंदगी में कब कहीं मैंने विचारा।
रिश्तों की डोरी से बँध के यों ही जीना,
कायदे ही ज़िंदगी को है गवारा. . .
मैं सृजन की. . .

अब ना कोई होगा तेरा और ना मेरा,
जो भी होगा अब केवल होगा हमारा,
मन के भावों पर तो काबू कर ले 'अविरल'
टूट ना जाए कहीं ये दिल बेचारा. . .
मैं सृजन की. . .

मैं सृजन की कल्पना में खो रहा हूँ
दूर से आवाज़ ना देना दुबारा. . .
सृजन के स्वप्नों को अब मैं जी रहा हूँ,
देते रहना अब केवल तुम ही सहारा. . .
मैं सृजन की. . .

24 सितंबर 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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