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अनुभूति में राजेन्द्र प्रसाद काण्डपाल की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आदमी और साँप
आसमान का रोना
गाली बकते बच्चे
मैं
मैं रहबर

 

मैं

मुझे,
बेकार समझ कर
कूड़ेदान में फेंक दिया गया,
सड़ने और गलने देने के लिए ।
लेकिन,
मुझ में एक बीज छिपा था
जो,
उस सड़ाँध वाले,
गन्दे कूड़ेदान में भी
विकसित हुआ,
फूला और
फलदार वृक्ष बन गया ।

९ जुलाई २०१२

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