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अनुभूति में रमेश नीलकमल की रचनाएँ —

अगिया बैताल मौसम
कौन जाने
बीसवीं सदी
सन्नाटा

 

अगिया बैताल मौसम

मौसम है अगिया बैताल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
पूछना नहीं घर का हाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे

छुईमुई दुलहन को छू गई उदासी
सोने-से सुगना को हुई कुकुर-खाँसी
सतरंगी बिटिया का इंद्रधनुष टूटा
मन के अरमानों को रोज़ लगे फाँसी
और तुम बजाते हो गाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे

गाँव के फफोलों की है दवा शहर में
और शहर को देखो घाट में न घर में
सुबह-शाम का सूरज नापता अँधेरा
जीवन के नाम वसीयत लिखा ज़हर में
प्यादे की फर्जी-सी चाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे

देश-देश करते हम, देश वह कहाँ है
नदियाँ घी-दूध की, निवेश वह कहाँ है
कोई भी राह चलो दर्द के सफ़र में
जीवन में जीवन परिवेश वह कहाँ है
केवल है बातों का जाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे

विश्व की परिधि झूठी, गाँव-गाँव वृत्त है
कौन अग्नि ज्वाला में डाल रहा घृत है
शांति के कबूतर की विषम देह गाथा
जो समाज का द्रोही वह ही आदृत है
दूर नहीं अब है भूचाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे

9 जनवरी 2007

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