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अनुभूति में संगीता गोयल की रचनाएँ-

जीवन का अर्थ
जो हट कर रहा है
प्रश्न
सम्प्रति
तीन छोटी कविताएँ

संकलन में
हाथ में प्याला - 'गाँव' में अलाव में

 

प्रश्न

कहते हैं विधाता भी
दुनिया बना कर
ऐसे थक कर सो गया
अपनी ही
कृति के जाल में
यों उलझ कर खो गया
उसके
मनस शरीर के
इतने टुकड़े हुए
कण कण
उसके आभास के
प्रश्न बन कर
रह गये।

 

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