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प्रार्थना

कविता एक नदी है
सूर्यमन्त्र का पाठ करती
सोने की हो जाती है
नदी
जब कविता-पाठ करता है
सूर्य,
धूप में चमक रही है
सोने की नदी,
आओ बैठें, यहीं
ठंडी-घनी छांव में
देवदारु के तने के साथ
सर टिकाये
आँखें मूंदे
देखें सपना,
सपने में उतरतीं
कितनी-कितनी जलपरियाँ,
कविता-पाठ करती नदी
नदी में अवतरित होता
जल का आचमन करता
सुबह-सुबह का सूर्य,
देवदारु पर
देवताओं का वास है,
मुझे वृक्ष हो जाने दो
ओ देवता
मुझे कविता-पाठ करने दो
नदी को कविता हो जाने दो...

२३ जुलाई २०१२

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