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अनुभूति में सतीश सिंह की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
चुपके से
झूठ
याद
याद करूँगा
स्मृतियाँ

  झूठ

जी भर के निहारा
सराहा खूब
मेरी सीरत को
छुआ, सहलाया और पुचकारा
मेरे सपनों को
जब मैं डूब गया
तुम्हारे दिखाये सपनों के सागर में
मदहोशी की हद तक
तब अचानक!
तुम्हारा दावा है
तुमने नहीं दिखाये सपने
क्या तुम बोल सकती हो
कोई इससे बड़ा झूठ?

२२ मार्च २०१०

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