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अनुभूति में सत्य प्रकाश बाजपेयी की
रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अंतर्मन
अनंत चतुर्दशी
आज माँ आई थी
घर
देखा देखी
प्रतीक्षा
भूख

 

भूख

मज़हब जरूरी नहीं
जरूरी है, रोटी का होना
साथ-साथ इंसान होना
जिसे भूख हो
रोटी की...

मज़हबी भूख उन्माद में
लील लेती है सब कुछ
और इंसानी भूख उन्माद में चाहेगी
सिर्फ रोटी
उनको चिल्लाने दो लाउडस्पीकरों पर
कि मज़हब बिना
तुम इंसा नहीं
जानवर हो...सिर्फ जानवर
पर कम से कम
हैवान तो नहीं
कि बिखरा सको मांस के लोथड़े
एक झटके में सड़को पर

इंसानी भूख रोटी छीन सकती है,
बांट भी सकती हैं...
पर इसने मुल्क नहीं बांटे
सब बांटे हैं, तुम्हारी स्वार्थ लोलुपता ने
तुम्हारे छलावे ने
सत्ता की चमक ने

गांधी से गुजरात तक
जिन्ना से जेहाद तक
सब मज़हबी दंश है
पर तुममे जो मानव का अंश है
उसे भूख है...
सिर्फ रोटी की ।

१४ मई २०१२

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