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  पर्यावरण की चिंता

गुड़िया से मैं जब जब खेलूँ, चिंता-सी हो जाती है।
पर्यावरण देखकर अपना, पीड़ा-सी हो जाती है।।

इस दुनिया में गुड़िया मेरी, साँस कहाँ ले पाएगी।
नन्हीं जान यहाँ बेचारी, घुट-घुट कर मर जाएगी।।

सोच रही हूँ एक बगीचा, आँगन में लगवाऊँगी।
छोटा-सा तालाब बना कर, कुछ मछली डलवाऊँगी।।

कुछ फलदार वृक्ष भी होंगे, हरी घास लगवाऊँगी।
चारों तरफ़ फूल के पौधे, भीत पर बेल चढ़ाऊँगी।।

देख नज़ारा मम्मी पापा, मेरे खुश हो जाएँगे।
सींच-सींच कर माली काका, मन ही मन सुख पाएँगे।।

लीची आम फलेगा, मेरा भइया तोड़ कर खाएगा।
फूलों से खुशबू आएगी, मेरे मन को भाएगा।

गुड़िया की जब शादी होगी, मेरी सखिया आएँगी।
मेरा बगीचा देखेंगी, मन में ही ललचाएँगी।।

मैं बोलूँगी तुम भी जा कर, घर पर बाग लगाओ।
पर्यावरण संतुलित होगा, जी भर कर सुख पाओ।।

24 अप्रैल 2005

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