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वेदना
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सच्चा सुख

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  फिर से हम होंगे जवाँ

फिर से हम होंगे जवाँ यह हमें उम्मीद है।
छोड़ दी जीने की आशा वह भला जीएगा क्या।।
माँगता है सिर्फ़ अमृत वह गरल पीएगा क्या।
हम गरल पी के जीएँगे यह हमें उम्मीद है।।

फिर रहे थे बन के भँवरा हम कभी गुंजार में।
चक्षुओं को तृप्त करते थे कभी बाज़ार में।।
अब भी यह सब कर सकेंगे यह हमें उम्मीद है।।

व्यंजनों का लुत्फ़ लेना ही हमारा काम था।
हाथ में चाहत के माफ़िक ही छलकता जाम था।।
जाम छलकाते रहेंगे - यह हमें उम्मीद है।।

पहन कर रेशम - पशम इतराते फिरते थे कभी।
देख कर हमको हमारी रीस करते थे सभी।
रीस यह कायम रखेंगे यह हमें उम्मीद है।।

24 अप्रैल 2005

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