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अनुभूति में शशि रंजन कुमार की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
अभिलाषा
असाढ की बदली
पार : बार बार
प्रेम : चिरंतन
बिछुडने से पहले
मृत्यु
याचना
याद
यही तो है प्यार
साँझ
सृजन

 

याचना

मैंने कहा
थम भी जाओ समीर
पीपल की फुनगियों पर
एक उसाँस भर लेने दो
रोम-रोम में फैल जाने दो
सिहरन।
मैंने कहा
रूक भी जाओ रवि
समुद्र की उद्वेलित लहरों पर
काँपती छाया उकेर लेनें दो
नस-नस में पसर जाने दो
स्फुरन।
मैंने कहा
ठहर भी जाओ समय
निस्सिम के कगार पर
एक अचल विस्मित क्षण जी लेने दो
इस विराट को
कन-कन में व्यापने दो
अनुक्षण।

१ अप्रैल २००४

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