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अनुभूति में शैली खत्री की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अगहनी धान
जिंदगी और मौत (तीन कविताएँ)
तुम बिन
प्रार्थना
मेरा छल

 

प्रार्थना

सड़क के किनारे
उस छोटे से मंदिर
के बाहर
जमा हैं लोग
बज रहे करताल
गूँज रही शंख ध्वनि
जय-जयकार है माता की
लोगों की बंद आँखें
बुदबुदाते होंठ
माँग रहे वर्षा
मैया अब न तरसा
तपती धरती ठण्डी कर दे
समवेत स्वर में
गूँजा जयजयकार
माँ से फिर वही पुकार
इधर थोड़ी दूर
एक फटेहाल माँ
अपने पैबंद वाले आँचल से
बीमार बच्चे को ढँक कर
खुली आँखों से देखती है आकाश
हिलते हैं उसके होंठ
हे ईश्वर
कहीं पानी न बरसा देना
पास नहीं है छत्र छाया कोई
मेरे बीमार बच्चे पर तरस खाना
पानी न बरसाना न बरसाना

२६ जनवरी २०१५

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