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जियें शुद्ध हवा में
मुहल्ले की तंग गलियों से निकल कर
सड़क पर आते तक
बस में बैठे हुये
बाइक पर सवार,
नाक बंद किये हुये इंसानों को,
रास्तों के दोनो तरफ,
दिख जाते हैं,
मुँह चिढ़ाते,
कूड़ों के ढेर
और इनमें पलती बीमारियाँ
ये कुसूर किसका है?
हम इंसानों की नादानियाँ
पर्यावरण की अनदेखी
बेसाख़्ता कटते पेड़
सोचिये
इन सबका क्या अंजाम होगा?
वही, झुलसाती गर्मी,
चटखे हुये खेत
सूखी नदियाँ,
और कभी
उफनती नदी, वो सैलाब,
जो छोड़ जाता है, पीछे,
मातम करते इंसान
आओ दोस्तो,
एक कदम मैं चलता हूँ
एक तुम चलो,
मैं अपने घर से शुरू करूँ
तुम अपनी शुरूआत करो,
तुम अपना घर साफ करो
मैं अपना,
एक पेड़ मैं लगाता हूँ
एक तुम लगाओ
आओ,
जियें शुद्ध हवा में
७ जुलाई २०१४ |