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अनुभूति में शिज्जु शकूर की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
उपयोगिता
उम्मीद... हौसला...उद्देश्य…
एक शाम
जियें शुद्ध हवा में

मानवता जयी हो

 

उपयोगिता

फौलाद भी
चोट से आकार बदल लेते हैं
या टूट जाते हैं
फिर इंसान की क्या बिसात
कब तक सहेगा चोट
आखिर टूटना पड़ेगा
इंसान ही तो है
मगर
टूटकर भी कायम रहेगा
या बिखर जायेगा
ये इंसान की प्रकृति तय करेगी

हालात बदलने को तैयार है
पुरानी सड़क पर
डामर की नई परत बिछेंगी
खण्डरों का जीर्णोद्धार होगा
पुरानी इमारत के मलबे पड़े हैं
कुछ मलबे काम आयेंगे
कुछ मलबे मिटाये जायेंगे
भंगार अनुपयोगी है
मगर भंगार की भी कीमत है
कुछ भंगार हैं
पानी की खाली बोतल की तरह
जिसकी कोई कीमत नही
खाली तो खत्म
मेरे दिल ने मुझसे पूछा
भंगार तुम्हे भी होना है
ये कहो
टूटकर भी काम आओगे
या टूटकर सड़ोगे?

७ जुलाई २०१४

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