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अनुभूति में त्रिलोकीनाथ टंडन की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आत्मा
निजी स्वार्थ
प्रणय गीत
मेरा परिचय
वैरागी मन
 

 

वैरागी मन

पता नहीं कुछ दिनों से
मेरा अन्तर मन वैरागी हो गया
सोच रही हूँ
वैरागिनी बन जाऊँ।

जब से देखा है कबूतरों को चुगते दाना
मेरे पेट को न भाता खाना
सोच रही हूँ छोड़ दूँ रोटी खाना
जाकर कबूतरो के साथ चुगूँ दाना।

जब से देखा है पक्षियों का नीड़ बनाना
जब चाहे नीड़ से उड़ जाना
सोच रही हूँ छोड़ दूँ अपना आशियाना
जाकर पक्षियों के साथ नीड़ में रहना।

जब से देखा है मेघ का घिरना
धरती को तृपण करना
सोच रही हूँ छोड दूँ रोना
जाकर मेघ के साथ बरसते रहना।

जब से देखा है पेड़ों का मौन रहना
अपनी प्यारी मुस्काना बिखराते रहना
सोच रही हूँ छोड़ दूँ लड़ना
जाकर पेड़ों के साथ लहराते रहना।

जब से देखा है
कुतिया के बच्चों का सोना
झुण्ङ में निश्चित झपकी लेना
सोच रही हूँ
छोङ दूँ रातों का जगना
जाकर उन बच्चों के साथ
किसी सुनहरे सपनो मे खोना।

१३ जुलाई २०१५

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