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अनुभूति में विजयशंकर चतुर्वेदी की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आखिर कब तक
कपास के पौधे
चूक सुधार
दस मौतें
पृथ्वी के लिए तो रुको

 

 

आखिर कब तक?

गाँठ से छूट रहा है समय
हम भी छूट रहे हैं सफर में

छूटी मेले जाती बैलगाड़ी
दौड़ते-दौड़ते चप्पल भी छूट ग
गिट्टियों भरी सड़क पर
हल में जुते बैल छूट गए
छूट गया एक-एक पुष्ट दाना

देस छूट गया
रास्ते में छूट गए दोस्त
पेड़ तो छूटे अनगिनत
मूछों वाले योद्धा भी छूट गए
जिसे लेकर चले थे
वह वज्र छूट गया

छूट गया ईमान
पंख छूट गए देह से
हड्डियों से खाल छूट ग
आखिर कब तक नहीं छूटेगी सहनशक्ति?

२९ मार्च २०१०

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