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अनुभूति में विजय राठौर की रचनाएँ-

कविताओं में-
असुरक्षित नहीं हूँ कदाचित
कलम की नोक पर
जब रोया एक बार
समय का पहिया

 

कलम की नोक पर

उस समय को
याद करता हूँ
जब पकड़ी थी मैंने कलम
और काले किये थे कुछ पन्ने

पेड़-पौधे, ढोर-डंगर
चिड़िया और कंकर-पत्थर
जाने कैसे सब मे दिख जाती है
कुछ अदृश्य इबारतें
जिन्हें लिपिबद्ध करना
आदत बन गई न जाने कब

कब मैंने पीड़ाओं को किया आत्मसात
कब जन्मा मेरी आँखों में विद्रोह
मुझे पता नही

यह भी नही मालूम कि
रोशनी के दिये
किसने दिये मुझे
अंधेरों के खिलाफ लड़ने की ताकत
कब पैदा हुई मुझमें
मुझे नहीं मालूम

यह ज़रूर पता है अब कि
मेरे शब्द बन चुके हैं धारदार-हथियार
और सहमा हुआ समय
घबराता है मुझसे बार-बार

या तो यह समय बदले
या मै हो जाऊँ पूर्ववत तटस्थ
दोनों फ़ैसले अभी भी सुरक्षित हैं
मेरी कलम की नोक पर

१ सितम्बर २००८

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