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अनुभूति में विजय राठौर की रचनाएँ-

कविताओं में-
असुरक्षित नहीं हूँ कदाचित
कलम की नोक पर
जब रोया एक बार
समय का पहिया

 

समय का पहिया

शिखर पर रहते
शिखर ही हो जाने की मंशा से
धूल धूसरित होता है वजूद

क्षण भर
जमीन में गुजारने की दहशत
है मन प्राण

समय नही जानता
पूर्वाग्रह
समय नही करता
पंक्ति-भेद
उसका पहिया
घूमता है निरंतर
पहिये के साथ
बँधे होते हैं हम

इसीलिये पहिये के साथ ऊपर नीचे होना
निश्चित ही नियति है हमारी

१ सितम्बर २००८

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