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ढूँढता सहारा

सिंधू गर्भ के मध्य में
नभमंडल के सहारे
वसुंधरा के तल पर
अह! मैं रह गया अकेला।

किंचित ढूँढ़ता एक सहारा
आशा के संचार लिए
आएगा क्षितिज पार से
नवजीवन का सहारा।

सोचता यह स्वर्ण पल
कब जीवन को उभारेगा
आज इस अरण्य में
ढूँढ़ता मैं एक सहारा।।

क्या मैं भी सहभागी
होऊँगा श्री हरि कृपा का
भक्ति शून्य ह्रदय में

क्या मृदुल आलोक होगा?

हे गज के रक्षक
शिला को तैराने वाले
मेरे इस भौतिक शरीर को
क्या मिलेगा एक सहारा

इस नक्षत्र के तले
सिंधु गर्जन से भयाक्रांत
सागर गर्त में विलीन होता
ढूँढ़ता मैं एक सहारा।।

२२ सितंबर २००८

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