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तुमको अंतिम प्रणाम

हे सूर्य! तुमको अंतिम प्रणाम
रक्त रंजित नभ के स्वामी
प्रतिबिंबित चंद्र की कांति तुमसे
आज डूब रहे जलधि में मौन

क्या छोड़ अकेला हमें अरण्य में
रह पाओगे तुम सुख-शांति से
सत्य का यह ह्रास मूक देखते
नभमंडल के ये अनगिनत तारे

देखता मैं भी तुमको समुद्र क्षितिज से
जहाँ वीणा के तार छेड़ती सिंधु-लहरें
तुम्हारी ही वंदना के स्वरों में
करता तुमको अंतिम प्रणाम

२२ सितंबर २००८

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