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अनुभूति में दर्शवीर संधु की रचनाएँ—

छंदमुक्त में-
कर्म
घरौंदा
बातें
सफर
हक

 

सफर

कलम,
आ फिर से चलें
जीने एक नया सफ़ा कोरेपन का

कि आसमाँ तो है
बेकलम परिंदों की बेबाक लकीरों से सना
तू आज लिख इस जुबाँ पे,
मुर्दा छालों की
दास्ताँ

कि जिए थे खामोश बुलबुले,
एक उम्र खला की
उधारी

तेरे अपने थे,
तो चल आज ये हिसाब भी चुकता करें

तू टूट
मैं खामोश होता हूँ

मिलेंगे,
जहाँ हो सकें बातें
बेलफ्ज़, मुँह जुबानी

२५ अगस्त २०१४

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