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अनुभूति में रामकृष्ण द्विवेदी 'मधुकर' की रचनाएँ—

अंजुमन में-
उफनाए नद की कश्ती
बढ़ाया प्रेम क्यों इतना

शिक्षा का संधान चाहिये

गीतों में-
बादल गीत

मोर पिया अब मुझसे रीझे

छंदमुक्त में—
किरन
जलकोश
जीवन सूक्त
दृष्टि
देखा है
नारी
प्रभात: दो रंग
पाँच छोटी कविताएँ
बुलबुला
साम्यावस्था
सावन

संकलन में-
हुए क्यों पलाश रंग रंगत विहीन

 

जीवन सूक्त

कितना सजाया हमने
और कितना संवारा
कितनी हिफ़ाज़त से
रखा इसको
नये–नये जिल्द चढ़ाए
नये–नये रंग बिरंगे कागज़ों से
सजाया इसको
विभिन्न प्रदर्शनियों में
पारितोषिक भी पाया
प्रदर्शित कर इसको
फिर अपने भवन के
विशिष्ट कक्ष में
सजाया इसको
हमारे पूर्वजों नें भी तो यही किया था
वही परंपरा
वही तन्मयता
वही लगन
लेकिन नहीं
उन्होंने इसके पन्ने उलटे
सूक्तियों को आत्मसात किया
विशिष्टताओ को अंगीकृत किया
परंतु मैंने
केवल आवरण देखा
आत्मा को नहीं देखा
आज जब प्रथम बार
पन्ना उलटने की इच्छा हुई
खोयेपन की अनुभूति हुई
आत्मा जागृत हुई
जीवन के झूठे और रुपहले तार टूटे
तो अपने को असहाय पाया
समय ने चेतावनी दी कि
अब पढ़ने का समय नहीं है

१ नवंबर २००६  

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