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अनुभूति में सरोज भटनागर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में —
अभ्युदय
अस्तित्व
आँखें
बद्री विशाल
मैं भारतीय हूँ
चट्टान का फूल

संकलन में-
ज्योति पर्व– मन करता है

 

बद्री विशाल

जीवन कितना तुच्छ
कितना छोटा दिखता है
और प्रकृति से सानिध्य होता है।
विशाल पर्वत चोटियाँ
आकाश को चूमती हुई
चाँदी सी चमकती हुई बर्फीली रेखाएँ
मन्त्र मुग्ध करते ये पेड़
किसी सुन्दर साड़ी पर लगी
लेस की तरह और–
ये घुमावदार घाटियाँ–
किसी अनजान लक्ष्य की तरह
घूम घूमकर
ऊपर नीचे करते
जीवन की अनिश्चितता की तरह
कल–कल छल–छल करती
यह बहती नदियाँ
पहाड़ी नदियाँ
हमारे साथ
कहीं मंथर गति से
और कहीं–
अगाध जल लिये
बड़े–बड़े पत्थरों से टकराती
गूँजती ये लहरें
बस में बैठा प्राणी
ईश्वर की सत्ता का
एहसास करता हुआ
मूक इस विशाल प्रांगण में
अपने को तुच्छ पाता हुआ
बद्री जी विराजमान हैं
ग्यारह हजार फुट की ऊँचाई पर
पर वे तो हर क्षण हर कण
दर्शन कराते हैं–
चींटी सी चलती रेंगती दीखती इन
पगडंडी नुमा सड़कों पर
हमारी बस हम बेबस
यह नज़ारा देखते हैं और–
ईश्वर से साक्षात्कार करते हैं।

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