अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में सरोज उपरेती की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
गंगा और हमारी आस्था
बेटे का इन्तजार
मन मेरी नहीं सुनता
विदाई
वृद्धावस्था

 

 

 

वृद्धावस्था

कंकाल सा ये बदन ढल रहा
रेत के कण सा फिसलता जा रहा
साथ साथ दुनिया भर के गम
प्रति दिन समेटे जा रहा

असमर्थ सा ये जीवन
पंगु हो रहा प्रति पल प्रति क्षण
लाठी का संबल ले चलता
असहाय, भार स्वरूप बन

हृदय वेदना कह रही
थी कभी ये, बगिया हरी भरी
लाचार सा ये जीवन
जो कभी संबल रहा
आज संबल ढूँढ़ता सा फिर रहा

मध्यम मध्यम रोशनी में
टिमटिमाता, एक दीपक जल रहा
बुझ उठेगा एक हवा के झोंके से
तेल, इसमें बाकी ना रहा
सरोज उप्रेती

२४ जून २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter