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अनुभूति में शैल अग्रवाल की रचनाएँ- 

छंदमुक्त में-
अतीत के खज़ानों से
अभिनंदन
अशांत
आदमी और किताब
उलझन
एक और सच
एक मौका
ऐसे ही
किरक
कोहरा
खुदगर्ज़
जंगल
नारी
देखो ना
नेति नेति
बूँद बूँद
मिटते निशान
ये पेड़
लहरें
सपना अभी भी

हाइकू में
दोस्त, योंही, आज फिर, जीवन, आँसू

संकलन में-
गाँव में अलाव–धुंध में
शुभकामनाएँ–पिचकारी यह
होली – होली हाइकू
गुच्छे भर अमलतास– आई पगली
                 कटघरे में
                - मुस्कान
                - ममता

पिता की तस्वीर– बिछुड़ते समय
ज्योति पर्व– तमसो मा ज्योतिर्गमय
                - दिया और बाती
                - धूमिल रेखा
जग का मेला– चार शिशुगीत
ममतामयी– माँ : दो क्षणिकाएँ

 

अभिनन्दन

मेरे आजाद भारत देश की
पचासवीं साल गिरह पर
लोगों ने बहुत कुछ गाया
बहुत सुनाया खूब जश्न मनाया
फिर मेरे मस्तिष्क में आज क्यों
एक तूफान सा उठा है
जो हृदय को लपेटता
मेरे अस्तित्व को ही ले उड़ा है
दूर बहुत दूर
नदी–नाले समुंदर पहाड़
सब पार करता उस देश
उस धरती की ओर
जो मेरा घर था घर है
मेरा अपना भारत देश
माना कि धीरे–धीरे
मेरे सब निशान
मिटते जा रहे हैं
और बंजारे सी अपनी
इस नई पहचान के संग
खड़ी मैं सोच रही हूँ ––
कि कैसे तुम मुझे अब
इससे दूर–दूर रख पाओगे
मैं तो इसी की
मिट्टी से बनी हूँ
और यह मिट्टी
मेरे पूर्वजों के
खून से सिंची है
इसी ने तो मुझे
सर्वस्व दिया है
और इसी ने ही मेरा
सब सुख–चैन लिया है
मैं इसकी पहचान हूँ
और यह मेरा अभिमान।
पर स्वराज लेकर भी
सुराज का सपना देखने वाली
हर आँख क्यों आज भी बस
खून के ही आँसू रो रही है
क्यों गरीबी और भ्रष्टाचार के
बिस्तर पे लेटी मेरे आजाद भारत की
किस्मत आजतक भी सो रही है
क्यों दुराचार के दशानन के
दसों सर कटकर बार बार ही
फिर से उग आते हैं
देखो विभीषण के संग
राम, लक्ष्मण और हनुमान
कब कहाँ और कैसे
वापस फिर से मिल पाते हैं
सफेद हरे और वसंती
रंग में लिपटा यह तिरंगा
शान्ति, सौहाद्र्र्र्र्र्र और
संयम का प्रतीक है
हमने माना
अमन हमे प्यारा है
यह भी हमने जाना
भटके यदा–कदा भूले नहीं
बसंती चोले पर जब–जब
खून के वो छींटे पड़े
हजारों प्राण आज भी
कर्तव्य–पथ पर ही
एक साथ आगे बढ़े
शस्त्रों के संग लड़ने वाले
सब वे सेनानी वीर हैं
पर सिर्फ आत्म–बल पे
जो लड़े मेरे देशवासी
वीर ही नहीं महावीर हैं
राम, कृष्ण, बुद्ध और
नानक जैसे महात्मा
पैगम्बर पीर हैं
मेरे हाथों में
श्रद्धा के फूल हैं
और आँखों में
कर्तव्य का पानी
मेरे प्यारे देश बता
तुझ पर आज मैं
कौनसा फूल चढ़ाऊँ
देश–परिवेश की
परिधियों से परें
हम–तुम तो अभिन्न
और अविच्छेद हैं
जो कुछ भी मेरा
तन–मन–धन
सब तुझको ही अर्पण
आशीष यही चाहूँ अब तो
जब भी जन्मूँ
सिर्फ भारती
बनकर ही आऊँ
मैं तेरी पहचान हूँ
तू मेरा अभिमान
क्या हुआ जो दूर
मुझसे बहुत दूर
मेरा देश महान।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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