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क्या पहचानते हो

मैं साथ हूँ तुम्हारे
क्या तुम जानते हो?
साये की तरह नहीं,
हथेली की लकीरों की तरह
साथ हूँ तुम्हारे॥
जब तुम्हारी स्याही उतरी कागज़ पर
मैं सोख्ता बन गयी और
तुम्हारे अक्षरों की छाया पी गयी,
जब तुमने पकडी कुदाल
मैं नोक बन गई
कि तुम तोड़ सको ऊसर धरती को आसानी से,
मैं हवा हूँ जो सोख ले जाती है
तुम्हारा पसीना
मैं (ओक) अंजुरि हूँ तुम्हारे हाथ की
मुझमें ही भर कर पिया है तुमने ठंडा पानी
जीवनदायनी...
तुम्हारी बंद पलकों के पीछे की छाया हूँ मैं
नींद में गाल के नीचे रखी हथेली हूँ
तुम मुझमें जागते हो, मुझ में सोते हो
पर क्या तुम मुझे पहचानते हो??

२९ अक्तूबर २०१२

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