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अनुभूति में सुरेन्द्रनाथ मेहरोत्रा
की रचनाएँ —


तुकांत में-
आज के अर्जुन का आत्मबोध
आज कैसे गीत गाऊँ
नीति पथ
बाद मरने के
वरदान यह दो
शंकर का वरद पुत्

साहिल पे सफीना

मुक्तकों में-
तीन मुक्तक

संकलन में-

ज्योति पर्व में–नमन दीप को सौ सौ बार
दिये जलाओ–रात रात भर

 

आज के अर्जुन का आत्मबोध

शक्ति का साक्षात् प्रतिनिधि
तेज का आगार हूँ 'मैं'
अग्नि का आवेश मुझमें
स्कन्द का अवतार हूँ मैं।।

रूद्र का आवेश मैं ही
मेघ का उद्घोष मैं ही
काल है वश में हमारे
हूँ मरुत का रोष मैं ही

शस्त्र पाते त्राण मुझसे
अस्त्र पाते प्रण मुझसे
श्वास देती गति दिशा को
काल का निर्माण मुझसे

मैं स्वयंभू तो नहीं हूँ
जो बना तुमसे बना हूँ
कामना प्रतिमूर्ति केवल
मैं बना अपना नहीं हूँ

शक्ति के अनुकूल पथ दो
विश्व को आधार दे दूँ
साध्य के दर्शन करा दो
चेतना साकार कर दूँ।।

मैं विनत करबद्ध पूछूँ
हैं कोई मेरा नियन्ता
कौन क्या आदर्श मेरा
सम नियोजक विषम हन्ता।।

साधना त्रुटि से सशंकित
त्यागना चाहो मुझे तुम
स्वयम् अपने नीड़ से ही
होम करना चाहते तुम।।

स्वप्न मेरे भी इसी में
नीड़ पर अधिकार मेरा
शाख तरु मेरा बसेरा
है सकल परिवेश मेरा।।

बन्द हैं जब पन्थ सारे
मैं विवश अधिकार माँगू
आँख तक उठनी नहीं थी
मैं विवश असिधार माँगूँ

जब मिला जीवन मुझे है
मैं जिऊँगा शौर्य बन कर
अब बहूँगा बन प्रभंजन
मैं मरुत उन्चास बनकर

स्वार्थ की नगरी जलेगी
पाप की गठरी जलेगी
दर्प भस्मीभूत होगा
स्वार्थ की ठठरी जलेगी

जर्जरित कुन्ठा जलेगी
होलिका की दाह में
कपट की हठरी जलेगी
प्रज्वलन की राह में

यज्ञ का आह्वान मेरा
अघ विमोचन मन्त्र मेरा
सत्य करना है प्रतिष्ठित
आत्मबल ही तन्त्र मेरा

सह सको ज्वाला हवन की
हाथ में तब हविष लेना
धमनियों में हो लहू तो
शंख को स्वर नाद देना

कौरवों की इस सभा से
नोक तक मिलनी नहीं है
मदअन्ध दुर्योधन शकुनि से
सन्धि अब होनी नहीं हैं

गांडीव गुण आकर्ण रोपित
शर स्वयम् सन्धान चाहे
व्यवधान दे सामथ्र्य किसकी
नटराज है तान्डव रचाए

यज्ञ का आह्वान मेरा
अघ विमोचन मन्त्र मेरा
सत्य करना है प्रतिष्ठित
आत्मबल ही तन्त्र मेरा।।

 

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