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अनुभूति में विजय कुमार सिंह की रचनाएँ—

गीतों में-
पर्ण पतझड़ पीत
फिर बोलो बोलेगा कौन
मन माँझी बन कर गाता है

मेरा देश
वक्त की किताब में

  मेरा देश

यदि कहीं भी स्वर्ग है, स्वर्ग है यही विशेष
मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश
गा रहे मनुज यही, देव दैत्य यक्ष शेष,
मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश

नील-हरित जलधि रंग, अविरल उच्छल तरंग
हरीतिमा सजाए भूमि, पीत, लाल, श्याम संग
हिम ढके उतुंग तुंग, सज रहे हैं सौम्य श्वेत
मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश

आस से भरे प्रभात, राग-रंग साथ-साथ
खिलखिलाए पुष्प-पुष्प, हर दिशा भरे सुवास
वृक्ष गुल्म झूमते, लहलहाते खेत-खेत
मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश

स्वच्छ सलिल भर प्रवाह, सरित करें मृदुल नाद
झर-झर कर झरता नीर, ऊँचे-ऊँचे जलप्रपात
कलरव कर विहग-वृंद दे रहे यही सन्देश
मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश, मेरा देश

७ मई २०१२

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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