अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में विजय कुमार सिंह की रचनाएँ—

गीतों में-
पर्ण पतझड़ पीत
फिर बोलो बोलेगा कौन
मन माँझी बन कर गाता है

मेरा देश
वक्त की किताब में

  पर्ण पतझड़ पीत

पर्ण
पतझड़ पीत का सा
लय रहित किसी गीत का सा
बिलखती व्याकुल विरहणी केश बिखराए
भर सरोवर सदृश नयना नीर भर लाए

ललित
लोहित लालिमा में
नन्द निरुपम नीलिमा में
तरसता प्रिय के मिलन को कूह -कूह गाए
भर सरोवर सदृश नयना नीर भर लाए

घनक-
घनकत घन घनेरे
धमक-धमकत नाद नेड़े
यातनाएँ दे रहे स्वर मौन दहकाए
भर सरोवर सदृश नयना नीर भर लाए

धधक
धक धक धड़कता मन
फिर से लौटा दो वही क्षण
याचना करता क्यों प्रतिपल हाथ फैलाए
भर सरोवर सदृश नयना नीर भर लाए

७ मई २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter