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अनुभूति में रघुविन्द्र यादव की रचनाएँ-

नए दोहों में-
जनहित की परवाह नहीं

दोहों में-
जुगनू भी अब पूछते सूरज से औकात
डाल दिये वनराज ने, हिम्मत के हथियार

संकलन में-
नया साल- पूरे हों अरमान
मातृभाषा के प्रति- जनभाषा हिंदी बने
 

 

  जनहित की परवाह नहीं

जनहित की परवाह नहीं, नहीं लोक की लाज।
कौवों की सरकार का, करें समर्थन बाज।।

साँप-नेवलों में बढ़ा, जब से मेल-मिलाप।
दोनों दल खुशहाल हैं, करता देश विलाप।।

बुलबुल की अस्मत लुटे, बाज़ करेंगे जाँच।
यही लिखा कानून में, जरा गौर से बाँच।।

खाद्य मंत्री बन गए, जब से रँगे सियार।
भूखी जनता कर रही, तब से हाहाकार।।

जंगल में लागू हुआ, जब से नया विधान।
लोमड बन गए मंत्री, गीदड़ जी सुलतान।।

बिल्ली कराती दूध की, रखवाली श्रीमान।
बंदर करते फैसले, ऊँचे बैठ मचान।।

लोकतंत्र लागू हुआ, गया सिंह का राज।
बूथ लूटकर भेड़िया, बन बैठ वनराज।।

८ अप्रैल २०१३

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