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अनुभूति में राम निवास मानव की रचनाएँ-

नए हाइकु-
देखे जो छवि

कुंडलियों में-
हुई दर्दशा मंच की

हाइकु में-
जग सुरंग
नेता नरेश
बहरे पंच

मेरा जीवन

दोहों में-
कलजुगी दोहे
जीवन का नेपथ्य
महफ़िल थी इंसान की
राजनीति के दोहे
रिश्तों में है रिक्तता
सूख गई संवेदना

 

  कुंडलियाँ

हुई दुर्दशा मंच की, कविता है बेहाल।
हास्य-व्यंग्य के नाम पर, खींच रहे कवि खाल।।
खींच रहे कवि खाल, वक्त आया है कैसा।
ले कविता का नाम, हुआ हावी है पैसा।।
कह 'मानव' कविराय, रीति चली है अब नई।
ग़ायब है लय-तान, रस-विहीन कविता हुई।।

संघर्ष-पंथ पर बढ़े, लेकर कर में शीश।
करते सदा सहाय हैं, खुद उसकी जगदीश।।
खुद उसकी जगदीश, निरंतर उसे बढ़ाते।
विपदाओं के शीश, उसे ही सदा चढ़ाते।।
कह 'मानव' कविराय, जो करना है उत्कर्ष।
तो सुख-साधन छोड़, बस करो सदा संघर्ष।।

कवि, ऐसी छेड़ो ज़रा, मधुर सुरीली तान।
सुन जिसको आनंद से, लगें चहकने प्राण।।
लगें चहकने प्राण, सदा गूँजे स्वर-लहरी।
यही चाहता देश, बनो तुम सच्चे प्रहरी।।
कह 'मानव' कविराय, बने युग-द्रष्टा की छवि।
अपने मन का राग, भरो अब शब्दों में कवि।।

अब तो नेता देश के, व्यर्थ बजाते गाल।
राजनीति के नाम पे, करते फिरें धमाल।।
करते फिरें धमाल, मारते फिरते लंगड़ी।
उछालते हैं व्यर्थ, सदा औरों की पगड़ी।।
कह 'मानव' कविराय, भला होते किसके कब।
'स्वारथ' के बेताल, हुए सब नेता हैं अब।।

२६ जनवरी २००९


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