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अनुभूति में डॉ. योगेन्द्रनाथ शर्मा अरुण की रचनाएँ-

गीतों में-
चलो प्रीत के दीप जलाएँ
जीवन तो फूल सरीखा है
नाता ये कैसा है
मैं ऋणी हूँ प्रिय तुम्हारा
हर दिल में स्थान मिलेगा

दोहों में-
जीवन के अनुभव

संकलन में-
दीप धरो- चलो प्रीत के दीप जलाएँ

 

चलो, प्रीत के दीप जलाएँ

हम उजियालों के प्रहरी हैं
अँधियारों से कैसा नाता?
चलो, प्रकाश के दीप जलाएँ

आशाओं के स्वप्न सँजो कर
हम तो बढ़ते हैं नित आगे
चरणों की गति देख हमारी
बाधा हम से डर कर भागे

साहस का वरदान लिए हम
अभिशापों से कैसा नाता?
नित आशा के दीप जलाएँ

देह हमारा प्रेय बनी कब?
आत्म-तत्व के रहे पुजारी
व्यष्टि छोड़, समष्टि को चाहा
परमार्थ बना साधना हमारी

युग-निर्माण हमारी मंजिल
विध्वंसों से कैसा नाता?
नए सृजन के दीप जलाएँ

विश्व बने परिवार हमारा
यही हमारा लक्ष्य रहा है
युग की खातिर जिए सदा हम
औरों की खातिर दुःख सहा है

यह वसुधा परिवार हमारा
फिर किससे नफरत का नाता?
चलो, प्रीत के दीप जलाएँ

१३ जुलाई २०१५

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