अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में बलबीर सिंह 'रंग' की रचनाएँ-

गीतों में
अभी निकटता बहुत दूर है
आया नहीं हूँ
जीवन में अरमानों का
तुम्हारे गीत गाना चाहता हूँ
पीछे जा रहा हूँ मैं
पूजा के गीत
बन गई आज कविता मेरी
मेरे जीवन के पतझड़ में

 

  पूजा के गीत

पूजा के गीत नहीं बदले,
वरदान बदलकर क्या होगा?
तरकश में तीर न हों तीखे, संधान बदलकर
क्या होगा?

समता के शांत तपोवन में
अधिकारों का कोलाहल क्यों?
लड़ने के निर्णय ज्यों के त्यों, मैदान बदलकर
क्या होगा?

मानवता के मठ में जाकर
जो पशुता की पूजा करते,
प्रभुता के भूखे भक्तों का ईमान बदलकर
क्या होगा?

पथ की दुविधाओं से डरकर
जो सुविधाओं की ओर चले,
ऐसे पथभ्रष्ट पंथियों का अभियान बदलकर
क्या होगा?

यदि फूलों में मधु-गंध न हो
काँटों का चुभना बंद न हो,
चिड़ियों की चहक स्वच्छंद न हो उद्यान बदलकर
क्या होगा

२४ अप्रैल २००६

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter