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अनुभूति में भगवती चरण वर्मा की रचनाएँ-

कविताओं में-
देखो, सोचो, समझो

पतझड़ के पीले पत्तों ने
बस इतना--अब चलना होगा
संकोच-भार को सह न सका

गीतों में-
आज मानव का सुनहला प्रात
आज शाम है बहुत उदास
कल सहसा यह संदेश मिला
कुछ सुन लें कुछ अपनी कह लें

तुम अपनी हो, जग अपना है
तुम मृगनयनी
तुम सुधि बनकर
मैं कब से ढूँढ रहा हूँ

संकलन में -
प्रेम गीत- मानव
मेरा भारत- मातृ भू शत शत बार प्रणाम

 

देखो, सोचो, समझो

देखो, सोचो, समझो, सुनो, गुनो औ' जानो
इसको, उसको, सम्भव हो निज को पहचानो
लेकिन अपना चेहरा जैसा है रहने दो,
जीवन की धारा में अपने को बहने दो

तुम जो कुछ हो वही रहोगे, मेरी मानो।

वैसे तुम चेतन हो, तुम प्रबुद्ध ज्ञानी हो
तुम समर्थ, तुम कर्ता, अतिशय अभिमानी हो
लेकिन अचरज इतना, तुम कितने भोले हो
ऊपर से ठोस दिखो, अन्दर से पोले हो

बन कर मिट जाने की एक तुम कहानी हो।

पल में रो देते हो, पल में हँस पड़ते हो,
अपने में रमकर तुम अपने से लड़ते हो
पर यह सब तुम करते - इस पर मुझको शक है,
दर्शन, मीमांसा - यह फुरसत की बकझक है,

जमने की कोशिश में रोज़ तुम उखड़ते हो।

थोड़ी-सी घुटन और थोड़ी रंगीनी में,
चुटकी भर मिरचे में, मुट्ठी भर चीनी में,
ज़िन्दगी तुम्हारी सीमित है, इतना सच है,
इससे जो कुछ ज़्यादा, वह सब तो लालच है

दोस्त उम्र कटने दो इस तमाशबीनी में।

धोखा है प्रेम-बैर, इसको तुम मत ठानो
कडु‌आ या मीठा ,रस तो है छक कर छानो,
चलने का अन्त नहीं, दिशा-ज्ञान कच्चा है
भ्रमने का मारग ही सीधा है, सच्चा है

जब-जब थक कर उलझो, तब-तब लम्बी तानो।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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