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अनुभूति में भगवती चरण वर्मा की रचनाएँ-

कविताओं में-
देखो, सोचो, समझो

पतझड़ के पीले पत्तों ने
बस इतना--अब चलना होगा
संकोच-भार को सह न सका

गीतों में-
आज मानव का सुनहला प्रात
आज शाम है बहुत उदास
कल सहसा यह संदेश मिला
कुछ सुन लें कुछ अपनी कह लें

तुम अपनी हो, जग अपना है
तुम मृगनयनी
तुम सुधि बनकर
मैं कब से ढूँढ रहा हूँ

संकलन में -
प्रेम गीत- मानव
मेरा भारत- मातृ भू शत शत बार प्रणाम

 

 कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें

जीवन-सरिता की लहर-लहर,
मिटने को बनती यहाँ प्रिये
संयोग क्षणिक, फिर क्या जाने
हम कहाँ और तुम कहाँ प्रिये।

पल-भर तो साथ-साथ बह लें,
कुछ सुन लें, कुछ अपनी कह लें।
आओ कुछ ले लें औ' दे लें।

हम हैं अजान पथ के राही,
चलना जीवन का सार प्रिये
पर दुःसह है, अति दुःसह है
एकाकीपन का भार प्रिये।

पल-भर हम-तुम मिल हँस-खेलें,
आओ कुछ ले लें औ' दे लें।
हम-तुम अपने में लय कर लें।

उल्लास और सुख की निधियाँ,
बस इतना इनका मोल प्रिये
करुणा की कुछ नन्हीं बूँदें
कुछ मृदुल प्यार के बोल प्रिये।

सौरभ से अपना उर भर लें,
हम तुम अपने में लय कर लें।
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

जग के उपवन की यह मधु-श्री,
सुषमा का सरस वसन्त प्रिये
दो साँसों में बस जाय और
ये साँसें बनें अनन्त प्रिये।

मुरझाना है आओ खिल लें,
हम-तुम जी-भर खुलकर मिल लें।

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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