| गौरव ग्राम में-असिधारा पथ
 ओस बिंदु सम ढरके
 प्राप्तव्य
 फागुन
 भिक्षा
 मधुमय स्वप्न रंगीले
 मन मीन
 मेह की झड़ी लगी
 सदा चाँदनी
 साजन लेंगे जोग री
 हम अनिकेतन
 विप्लव गायन
 हिंडोला
 दोहों में-सोलह दोहे
 संकलन में-वर्षा मंगल - घन गरजे
 |  | मेह की झड़ी लगी मेह की झड़ी लगी नेह की घड़ी लगी।हहर उठा विजन पवन,
 सुन अश्रुत आमंत्रण,
 डोला वह यों उन्मन,
 ज्यों अधीर स्नेही मन,
 पावस के गीत जगे, गीत की कड़ी जगी।
 तड़-तड़-तड़ तड़ित चमक-दिशि-दिशि भर रही दमक,
 घन-गर्जन गूँज-गमक -
 जल-धारा झूम-झमक,
 भर रही विषाद हिये चकित कल्पना-खगी।
 ध्यान-मग्न नीलांबर,ओढ़े बादर-चादर,
 अर्घ्य दे रहा सादर-
 जल-सागर पर गागर,
 भक्ति-नीर, सिक्त भूमि-स्नेह सर्जना पगी,
 अंबर से भूतल तकतुमको खोजा अपलक,
 क्यों न मिले अब तक?
 ओ, मेरे अलख-झलक!
 बुद्धि मलिन, प्राण चकित, व्यंजना ठगी-ठगी,
 मेह की झड़ी लगी नेह की घड़ी लगी।
 १ अगस्त २००५  |