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अनुभूति में रामानुज त्रिपाठी की रचनाएँ-

गीतों में—
अहेरी धूप
कौन मौसम अनजाना
गूँगा सूरज
घेर रही बेचैनी
भूख
लहर सिमटकर सोई है

संकलन में—
ज्योति पर्व– छत मुंडेर घर आँगन
वासंती हवा–साँझ फागुन की

 

 

गूंगा सूरज

चलते-चलते गूंगा सूरज
क्षण भर तल्ख़ तल्ख़ शब्दों में
जाने क्या क्या आज लिख गया
श्यामपट्ट पर शाम ढले।

किसी पेड़ की
दुखद मौत पर
कोई चिड़िया सिसक रही है
प्यासे प्रश्नों
के उत्तर में
नदी मौन है झिझक रही है
धूप छांव की फटी पिछौरी
ओढ़े ये अनमने मौसम
आए सूनेपन को छलने
किंतु स्वयं ही गए छले।

जले चिराग़ों की
बस्ती में
घुस आईं जंगली आँधियाँ
खड़ी कर गईं
कब्रगाह में
रोशन लम्हों की समाधियाँ
किसी सिसकती लौ के आँसू से
जब रचे गए काजल गृह
अंधकार उद्घाटन करने
रोशनियों के गाँव चले।

ठहरे हुए समय को
जब से
बारूदों ने नब्ज़ छुआ है
मौन हवा के
कटे हाथ से
रिस रिस कर के खून चुआ है
जिस्म नोच कर आसमान का
एक लोथड़ा लिए चोंच में
उतर रहे हैं गिद्ध
पसरते सन्नाटों की छाँव तले।

२४ जून २००५

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