अनुभूति में
रमानाथ अवस्थी की
रचनाएँ -
दोहों में -
जिसे कुछ नहीं चाहिए
कविताओं में -
कभी कभी
चंदन गंध
चुप रहिए
मन
रात की बात
जाना है दूर
संकलन में -
मेरा भारत-
वह आग न जलने देना |
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चंदन गंध
चंदन है तो महकेगा ही
आग में हो या आँचल में
छिप न सकेगा रंग प्यार का
चाहे लाख छिपाओ तुम
कहने वाले सब कह देंगे
कितना ही भरमाओ तुम
घुंघरू है तो बोलेगा ही
सेज में हो या सांकल में
अपना सदा रहेगा अपना
दुनिया तो आनी जानी
पानी ढूँढ़ रहा प्यासे को
प्यासा ढूँढ़ रहा पानी
पानी है तो बरसेगा ही
आँख में हो या बादल में
कभी प्यार से कभी मार से
समय हमें समझाता है
कुछ भी नहीं समय से पहले
हाथ किसी के आता है
समय है तो वह गुज़रेगा ही
पथ में हो या पायल में
बड़े प्यार से चाँद चूमता
सबके चेहरे रात भर
ऐसे प्यारे मौसम में भी
शबनम रोई रात भर
दर्द है तो वह दहके गा ही
घन में हो या घानल में
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