अनुभूति में
शील की रचनाएँ-
कविताओं में--
निराला
फिरंगी चले गए
बैल
मेघ न आए
राह हारी मैं न हारा
संध्या के बादल
हल की मूठ गहो
संकलन में--
मेरा भारत-आदमी
का गीत
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फिरंगी चले गए
करती है दिन को रात सियासत सुदेश
की,
बोकर कलह के बीज, फिरंगी चले गए।
भ्रम की भँवर थी, ख़ुश थे,
अहिंसा से जय मिली,
दुश्मन बने अजीज़, फिरंगी चले गए।
आते हैं शील ज़लज़ले, ईमान की
क़सम,
राहें हुईं ग़लीज़, फिरंगी चले गए।
रहबर ही कर रहे हैं यहाँ, राहज़न
के काम,
माँगे मिली तमीज़, फिरंगी चले गए।
हम यौमे-स्वतंत्रता को फ़क़त
देखते रहे,
लग़ज़िश लगी लज़ीज़, फिरंगी चले गए।
१० अगस्त २००९ |