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अनुभूति में भगीरथ बडोले की रचनाएँ-

गीतों में-
डूबती चकत्ते-सी शाम
दूर तक धुँधलका
स्तब्ध हुआ आकाश
 

 

 

स्तब्ध हुआ आकाश

स्तब्ध हुआ आकाश
हवाएँ ठहरी ठहरी है
हर कोई असहाय, बात कुछ
गहरी गहरी है।

नकलीपन की किसी तपन ने
फैलाए जंजाल,
नया जमाना ओढ़
मुखौटे करता रहा कमाल,
अमिशापित जीवन के सम्मुख
अनजाने हालात,
राजमार्ग की भाग-दौड़, उत्पातों की सौगात।

भोर नहीं यह शाम नहीं,
खुदगर्ज दुपहरी है!
हर कोई असहाय, बात कुछ
गहरी-गहरी है!

पल-पल रिसते घाव, रोज
रिरियाते रहते लोग,
रिश्तों पर भरपूर
चोट कर चौंका रहे प्रयोग,
नहीं भरोसे काबिल कोई,
प्रतिवेशी आकार,
छल-बल से अपनाया ढोता दिशा-दिशा व्यापार!

द्वार-देहरी नहीं सुरक्षित,
बेसुध प्रहरी है!
हर कोई असहाय, बाक कुछ
गहरी-गहरी है!

जहर जी रहे नित्य,
निरर्थक लगते क्रिया-कलाप,
साँसों के आने-जाने के
सारे सुर चुपचाप,
भूख-प्यास बढ़ रही निरंतर,
उठते रहे सवाल,
आहत हुई चेतना मन की मधुवंती बेहाल,

चुकती रहीं प्रार्थनाएँ सब
प्रतिमा बहरी है!
हर कोई असहाय, बात कुछ
गहरी-गहरी है।

२२ मार्च २०१०

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