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अनुभूति में भारतेंदु मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अंधा दर्पन
गीत होंगे

मौत का कुआँ
रामधनी की माई
हमको सब सहना है

दोहों में-
सरिता के कूल

गीतों में-
कितनी बार
गयाप्रसाद
बाजार घर में
बाजीगर मौसम
बाँसुरी की देह दरकी
देखता हूँ इस शहर को
नवगीत के अक्षर
मदारी की लड़की
रोज नया चेहरा
वाल्मीकि व्याकुल है
समय काटना है

 

रोज नया चेहरा

रोज नया चेहरा पढता हूँ
इधर उधर सब देख समझकर
मन बेमन आगे बढता हूँ।

कुछ अपने कुछ बेगाने हैं
कुछ परिचित कुछ अनजाने हैं
कुछ झूठे कुछ बिल्कुल सच्चे
कुछ बूढे जवान कुछ बच्चे
इन्हे भागता हुआ देखकर
अनुभव की सीढी चढता हूँ।

कुछ तीखे कुछ मीठे चेहरे
कुछ बडबोले मन के गहरे
कहीं जानवर कहीं देवता
कहाँ जा रहे किसे क्या पता
जो पूरा मनुष्य सा दीखे
माटी का पुतला गढता हूँ।

कुछ वर्दी कुछ दाढी वाले
कुछ टाई कुछ कुर्ते वाले
कुछ बूढी तो कुछ बालाएँ
पंखकटी उडती महिलाएँ
मैं आँखों देखी तस्बीरें
मन के शीशे में मढता हूँ।

३ मई २०१०

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