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अनुभूति में भारतेंदु मिश्र की रचनाएँ-

नए गीतों में-
अंधा दर्पन
गीत होंगे

मौत का कुआँ
रामधनी की माई
हमको सब सहना है

दोहों में-
सरिता के कूल

गीतों में-
कितनी बार
गयाप्रसाद
बाजार घर में
बाजीगर मौसम
बाँसुरी की देह दरकी
देखता हूँ इस शहर को
नवगीत के अक्षर
मदारी की लड़की
रोज नया चेहरा
वाल्मीकि व्याकुल है
समय काटना है

 

सरिता के कूल


फिर सरिता के कूल पर, फूली सुन्दर काँस।
लहर लहर लिखने लगी, रेती पर उल्लास।।


चीटी अक्षत ले चढी, जब पीपल के शीश।
ब्रह्मराक्षस से बना, वह पीपल जगदीश।।


ढलते ढलते ढल रहा, पश्चिम का दिनमान।
अब सूरज से प्रार्थना, लिखे किरण मुस्कान।।


गीध कर रहे इन दिनो, रावण वध का स्वाँग।
ठगी जा रही जानकी, संत छानते भाँग।।


फिर उत्सव मुद्रा बनी, फिर खुश हैं महराज।
नगर दुल्हन सा सज गया, इस चुनाव के व्याज।।


रोहित से कहने लगे, हरिश्चन्द हो खिन्न।
दुख ही भोगा उम्र भर, तू पथ चुन ले भिन्न।।


हरे भरे थे फूलकर, पीले पड़े कनेर।
दिन फिरने में आजकल, लगती कितनी देर।।


काट बरगदों की जड़ें, करते हैं उद्योग।
गमलों मे बोने लगे, बौनेपन को लोग।।


नचिकेता से खुश हुए, तो बोले यमराज।
घर कपड़ा रोटी नकह, स्वर्ग माँग ले आज।।

१०
हम हैं यह सौभाग्य है, समय बडा ही ढीठ।
चार चाम की चाबुकें, एक अश्व की पीठ।।

११
दस्तक दे कहने लगा, सुबह सुबह ईमान।
कविता मे जीवित रखो, भाई मेरे प्रान।।

१२
इतनी हो प्रभु की कृपा, खाली रहे न जेब।
घर कपड़ा रोटी मिले, भले न हो पाजेब।।

१३
कल गाड़ी थी नाव पर, अब गाड़ी पर नाव।
समझ सका है आजतक, कौन समय का दाँव।।

१४
धूल नहायी चिड़ी का, था इतना विश्वास।
इक दिन बरसेगा यहाँ, मुट्ठी भर आकाश।।

१५
मुँह फेरे लेटे रहे, पहले दोनो मौन।
पुन: परस्पर पूछते, वह था, वह थी–कौन?

१६
बिना लिखे खत में मिला, सहमा हुआ गुलाब।
और लिफाफे पर लिखा, देना मुझे जवाब।।

१७
निंबिया बोली आम से, भूल गया अनुबन्ध।
मैं बौरी जब जब मिली, तेरे तन की गन्ध।।

१८
जिस निकुंज में खेलते, थे रति रस के खेल।
वहाँ पड़ोसी बो गया, चिनगारी की बेल।।

१९
धरती पहला छन्द है, सुने गुने चुपचाप।
खरबूजे की फाँक सा, इसे न बाँटें आप।।

२१ मई २०१०

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