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अनुभूति में देवेंद्र आर्य की रचनाएँ-

नए गीत-
ज़िंदगी की गंध
रहूँगा भोर तक
बहुत अँधेरा है
शब्द की तलवार

गीतों में-
आशय बदल गया
इतना ज्ञान नहीं
किससे बात करें
तुम्हारे बिन
बात अब तो खत्म करिए
मन सूखे पौधे लगते हैं

अंजुमन में-
जीवन क्या है
 


 

 

तुम्हारे बिन

अब कितने दिन और
भटकती रातें बिखरे बिखरे दिन
होगा भी क्या
इसके सिवा तुम्हारे बिन।

चांद सितारे होते तो हैं पर उपलब्ध नहीं होते
बिछुआ, पायल, कंगन, आंचल केवल शब्द नहीं होते।
चीज़ें तो कंधों पर भी ढोई जा सकती हैं लेकिन
खुशबू, अनुभव, स्वाद, गीत हम केवल यादों में ढोते।

पतझर का मौसम भी तो
मौसम ही होता है लेकिन
क्यों कुछ मामूली बातें भी
हो जाती हैं बहुत कठिन।

प्राणों के ऊपर निष्प्राणों की भी पड़ती है छाया
गांठ पड़ी उलझी किरनों को कौन भला सुलझा पाया
आड़ न हो तो आहट कैसी, बाड़ न हो, बेगाना क्या
एक मोह से ही तो मिट्टी, मिट्टी है, काया, काया।

ख़तरों का अनुमान अगर
लग भी जाए तो क्या होगा
क्या घर बैठे घर की प्यास
बुझा पाएगी पनिहारिन?

1 जुलाई 2007

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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