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अनुभूति में दिनेश सिंह की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अकेला रह गया
चलो देखें
नाव का दर्द
प्रश्न यह है
भूल गए
मैं फिर से गाऊँगा
मौसम का आखिरी शिकार

गीतों में-
आ गए पंछी
गीत की संवेदना
चलती रहती साँस
दिन घटेंगे
दिन की चिड़िया
दुख के नए तरीके
दुख से सुख का रिश्ता
नए नमूने
फिर कली की ओर
लो वही हुआ
साँझ ढले

हम देहरी दरवाजे

संकलन में-
फूले फूल कदंब- फिर कदंब फूले

 

चलो देखें...

चलो देखें,
खिड़कियों से झाँकती है धूप
उठ जाएँ।
सुबह की ताजी हवा में
हम नदी के साथ
थोड़ा घूम-फिर आएँ!

चलो, देखें,
रात-भर में ओस ने
किस तरह से
आत्म मोती-सा रचा होगा!
फिर जरा-सी आहटों में
बिखर जाने पर,
दूब की उन फुनगियों पर
क्या बचा होगा?

चलो
चलकर रास्ते में पड़े
अंधे कूप में पत्थर गिराएँ,
रोशनी न सही,
तो आवाज ही पैदा करें
कुछ तो जगाएँ!

एक जंगल
अंधरे का-रोशनी का
हर सुबह के वास्ते जंगल।
कल जहाँ पर जल भरा था
अंधेरों में
धूप आने पर वहीं दलदल!

चलो,
जंगल में कि दलदल में,
भटकती चीख को टेरें, बुलाएँ,
पाँव के नीचे,
खिसकती रेत को छेड़ें,
वहीं पगचिह्न अपने छोड़ आएँ।

९ जुलाई २०११

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