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अनुभूति में दिनेश सिंह की रचनाएँ-

नई रचनाओं में-
अकेला रह गया
चलो देखें
नाव का दर्द
प्रश्न यह है
भूल गए
मैं फिर से गाऊँगा
मौसम का आखिरी शिकार

गीतों में-
आ गए पंछी
गीत की संवेदना
चलती रहती साँस
दिन घटेंगे
दिन की चिड़िया
दुख के नए तरीके
दुख से सुख का रिश्ता
नए नमूने
फिर कली की ओर
लो वही हुआ
साँझ ढले

हम देहरी दरवाजे

संकलन में-
फूले फूल कदंब- फिर कदंब फूले


 

  साँझ ढले

भोरहरे के भागे पंछी
फिर लहके साँझ ढले।
बैठे शाखों पर सिर के ऊपर
चहके साँझ ढले।

पाथर कूटते खपीं साँसें
मिट्टी ढोते उभरें।
हाथों-पाँवों से फूटी-बहीं
पसीने की नहरें।
फसलों के दाने तब चूल्हे पर
महके साँझ ढले।

ऊँचाई के किस्से
मंज़िलें गढें जिन यारों में।
हम सारी रात उन्हें तकते हैं
चाँद-सितारों में।
जो आ जाते बाहों में
बहके-बहके साँझ ढले।

कब छूटेगा परदेश
देस की बोली लौटेगी।
इस नई हवा की- 'गन' से छूटी
गोली लौटेगी।
या यों ही हम हुड़केंगे बस,
रह-रहके साँझ ढले

फूटती जवानी जौगर से
ज्यों चोटों से चिनगी।
रोशनी फूटती भरे पेट-
सिर पर फूटी कलंगी।
पर, असगुनही चिड़िया पर्वत पर
चिहुँके साँझ ढले।

२६ अप्रैल २०१०

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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