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					आँख भर देखा  
					 
					साँस के इस पार हो या साँस के उस पार 
					तुम जहाँ पर हो बसा अपना वहीं संसार 
					 
					कुछ किया, घर से चले 
					इस द्वार पर आए 
					रूप बदला नाम बदला 
					पर वही साए 
					हर सफ़र ऐसा कटा जैसे सपन की शाम 
					बादलों की पौध सा हर जन्म का विस्तार 
					 
					घर सहारों पर उठा है 
					आँख भर देखा 
					आसमानों को उठाए 
					बिंदु की रेखा 
					यह सघन विश्वास जैसे जेठ का हो घाम 
					आस्था की धार ने हर दुख दिए निस्तार 
					 
					गा चुके कुछ गा रहे 
					कुछ को अभी गाना 
					आ रहे, ठहरे बहुत, है 
					लौट घर जाना 
					यह सड़क ऐसी कि कोई भीड़ है गुमनाम 
					पांच स्वर के पोरवाली बाँसुरी का भार 
					९ अगस्त २००६ 
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