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अनुभूति में जीवन शुक्ल की रचनाएँ —

गीतों में—
आषाढ़ तो आया
आँख भर देखा
माँग रहा लेकर कटोरा
व्यस्त

 


 

 

आषाढ़ तो आया

आषाढ़ तो आया
घास नहीं हो उठी झरबेरी
हरी हरी।

हथेलियाँ
पसार दीं, शूलों पर वार दीं
टुकड़े हो टूट पड़ा आसमान धरती पर
घूँघट में धूल की कल तक थी डरी डरी
आज है हरी हरी

हो उठी झरबेरी
हरी हरी।

कैसे क्या
ले आऊँ, सूनापन भर जाऊँ
रुकती नहीं है गति ये कलेण्डर की
ओ रे पहुना रे घन ! कमरव की
आँखें हैं भरी भरी

हो उठी झरबेरी
हरी हरी।

९ अगस्त २००६

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