अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में ज्योति खरे की रचनाएँ-

गीतों में-
उँगलियाँ सी लें
जाती हुई सदी का
जेठ मास में
धुँधलाते पहचान प्रतीक
साँस रखी दाँव

 

धुँधलाते पहचान प्रतीक

धूप किसी को किसी को छाँव
सुख के शहर ग़मों के गाँव

देख-देख आईना अब
खुद पर रहे हैं खिलखिला
गुजरे कल के जंगल में
खोजें प्रणय का ढहा किला
बढ़ती ही जाती हैं दूरियाँ
धुँधलाते पहचान प्रतीक
घास दुखों की हो गई काबिज
गुम हो गयी सुखों की लीक
नाकाबिल चलने से पाँव

नहीं मारती जोर ह्रदय में
अब जीने की चाह
दिवस महीने बरस-बरस
जीना हो गया गुनाह
अपने सम्मुख खड़ी जिरह
करती सी स्थितियाँ
मौन हमारा निर्विरोध
अपराधी सी स्वीकृतियाँ
उल्टे पड़े यहाँ सब दाँव

१३ मई २०१३

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter